Pratidin Ek Kavita

नन्ही पुजारन।असरार-उल-हक़ मजाज़

इक नन्ही मुन्नी सी पुजारन
पतली बाँहें पतली गर्दन

भोर भए मंदिर आई है
आई नहीं है माँ लाई है

वक़्त से पहले जाग उठी है
नींद अभी आँखों में भरी है

ठोड़ी तक लट आई हुई है
यूँही सी लहराई हुई है

आँखों में तारों की चमक है
मुखड़े पे चाँदी की झलक है

कैसी सुंदर है क्या कहिए
नन्ही सी इक सीता कहिए

धूप चढ़े तारा चमका है
पत्थर पर इक फूल खिला है

चाँद का टुकड़ा फूल की डाली
कम-सिन सीधी भोली भाली

हाथ में पीतल की थाली है
कान में चाँदी की बाली है

दिल में लेकिन ध्यान नहीं है
पूजा का कुछ ज्ञान नहीं है

कैसी भोली छत देख रही है
माँ बढ़ कर चुटकी लेती है

चुपके चुपके हँस देती है
हँसना रोना उस का मज़हब

उस को पूजा से क्या मतलब
ख़ुद तो आई है मंदिर में

मन उस का है गुड़िया-घर में

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

नन्ही पुजारन।असरार-उल-हक़ मजाज़

इक नन्ही मुन्नी सी पुजारन
पतली बाँहें पतली गर्दन

भोर भए मंदिर आई है
आई नहीं है माँ लाई है

वक़्त से पहले जाग उठी है
नींद अभी आँखों में भरी है

ठोड़ी तक लट आई हुई है
यूँही सी लहराई हुई है

आँखों में तारों की चमक है
मुखड़े पे चाँदी की झलक है

कैसी सुंदर है क्या कहिए
नन्ही सी इक सीता कहिए

धूप चढ़े तारा चमका है
पत्थर पर इक फूल खिला है

चाँद का टुकड़ा फूल की डाली
कम-सिन सीधी भोली भाली

हाथ में पीतल की थाली है
कान में चाँदी की बाली है

दिल में लेकिन ध्यान नहीं है
पूजा का कुछ ज्ञान नहीं है

कैसी भोली छत देख रही है
माँ बढ़ कर चुटकी लेती है

चुपके चुपके हँस देती है
हँसना रोना उस का मज़हब

उस को पूजा से क्या मतलब
ख़ुद तो आई है मंदिर में

मन उस का है गुड़िया-घर में