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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
पूछ रहे हो क्या अभाव है | शैलेन्द्र
पूछ रहे हो क्या अभाव है
तन है केवल, प्राण कहाँ है ?
डूबा-डूबा सा अन्तर है
यह बिखरी-सी भाव लहर है,
अस्फुट मेरे स्वर हैं लेकिन
मेरे जीवन के गान कहाँ हैं?
मेरी अभिलाषाएँ अनगिन
पूरी होंगी ? यही है कठिन,
जो ख़ुद ही पूरी हो जाएँ -
ऐसे ये अरमान कहाँ हैं ?
लाख परायों से परिचित है,
मेल-मोहब्बत का अभिनय है,
जिनके बिन जग सूना-सूना
मन के वे मेहमान कहाँ हैं ?