Pratidin Ek Kavita

वह मुझी में है भय | नंदकिशोर आचार्य 

एक अनन्त शून्य ही हो
यदि तुम
तो मुझे भय क्यों है ?
कुछ है ही नहीं जब
जिस पर जा गिरूँ
चूर-चूर हो छितर जाऊँ
उड़ जायें मेरे परखच्चे
तब क्यों डरूँ?
नहीं, तुम नहीं
वह मुझी में है भय
मुझ को जो मार देता है।
और इसलिए वह रूप भी
जो तुम्हें आकार देता है।


What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

वह मुझी में है भय | नंदकिशोर आचार्य

एक अनन्त शून्य ही हो
यदि तुम
तो मुझे भय क्यों है ?
कुछ है ही नहीं जब
जिस पर जा गिरूँ
चूर-चूर हो छितर जाऊँ
उड़ जायें मेरे परखच्चे
तब क्यों डरूँ?
नहीं, तुम नहीं
वह मुझी में है भय
मुझ को जो मार देता है।
और इसलिए वह रूप भी
जो तुम्हें आकार देता है।