Pratidin Ek Kavita

गीत | डॉ श्योराज सिंह 'बेचैन' 

मज़दूर-किसानों के अधर यूँ ही कहेंगे।
हम एक थे, हम एक हैं, हम एक रहेंगे।।
मज़हब, धर्म  के नाम पर लड़ना नहीं हमें।
फिर्को में जातियों में बिखरना नहीं हमें |।
हम नेक थे, हम नेक हैं, हम नेक रहेंगे ।
समता की भूख हमसे कह रही है अब उठो।
सामन्तों, दरिन्दों की बढ़ो, रीढ़ तोड़ दो ।।
अपने हकूक दुश्मनों से लेके रहेंगे |
कैसा अछूत-छूत क्या, हैं हिन्दू क्या मुसलमान ।
यकरसाँ हैं ज़माने के रफीको! सभी इन्सान |।
जो फर्क करेगा उसे जाहिल कहेंगे |
फिकों से, जुबानों से तो ऊपर उठे हैं हम ।
तूफान की रफ़्तार से आगे बढ़े हैं हम ।।
मेहनत के हक के वास्ते लड़ते ही रहेंगे ।
हमको तो शहीदों की शहादत पर नाज़ है।
दलितों के खून में रँगा ये तख़्तो-ताज़ है।।
इस मुल्क को महफूज़ हमेशा ही देखेंगे |
सदियों से पी रहे हैं सितमगर लहू के जाम।
मजलूम की तबाही बढ़ाता है यह निज़ाम |।
सहने को बहुत सह लिया बस अब न सहेंगे |
दुनिया में कमेरों ने चमत्कार किया है।
नाकारों, निठल्लों ने सदा खून पिया है।।
इस जोंक सी फितरत को उभरने नहीं देंगे |
समता, स्वतन्त्रता के नये गीत गाएँ हम |
इंसानी भाईचारे के डंके बजाएँ हम |।
मेहनतकशों जहान के मिल बैठ कहेंगे।
हम एक थे, हम एक हैं, हम एक रहेंगे।।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

गीत | डॉ श्योराज सिंह 'बेचैन'

मज़दूर-किसानों के अधर यूँ ही कहेंगे।
हम एक थे, हम एक हैं, हम एक रहेंगे।।
मज़हब, धर्म के नाम पर लड़ना नहीं हमें।
फिर्को में जातियों में बिखरना नहीं हमें |।
हम नेक थे, हम नेक हैं, हम नेक रहेंगे ।
समता की भूख हमसे कह रही है अब उठो।
सामन्तों, दरिन्दों की बढ़ो, रीढ़ तोड़ दो ।।
अपने हकूक दुश्मनों से लेके रहेंगे |
कैसा अछूत-छूत क्या, हैं हिन्दू क्या मुसलमान ।
यकरसाँ हैं ज़माने के रफीको! सभी इन्सान |।
जो फर्क करेगा उसे जाहिल कहेंगे |
फिकों से, जुबानों से तो ऊपर उठे हैं हम ।
तूफान की रफ़्तार से आगे बढ़े हैं हम ।।
मेहनत के हक के वास्ते लड़ते ही रहेंगे ।
हमको तो शहीदों की शहादत पर नाज़ है।
दलितों के खून में रँगा ये तख़्तो-ताज़ है।।
इस मुल्क को महफूज़ हमेशा ही देखेंगे |
सदियों से पी रहे हैं सितमगर लहू के जाम।
मजलूम की तबाही बढ़ाता है यह निज़ाम |।
सहने को बहुत सह लिया बस अब न सहेंगे |
दुनिया में कमेरों ने चमत्कार किया है।
नाकारों, निठल्लों ने सदा खून पिया है।।
इस जोंक सी फितरत को उभरने नहीं देंगे |
समता, स्वतन्त्रता के नये गीत गाएँ हम |
इंसानी भाईचारे के डंके बजाएँ हम |।
मेहनतकशों जहान के मिल बैठ कहेंगे।
हम एक थे, हम एक हैं, हम एक रहेंगे।।