Pratidin Ek Kavita

बचपन | विनय कुमार सिंह

चाय के कप के दाग
दिखाई दे रहे थे
और फिर गुस्से से
दी गई गाली के अक्स
उस छोटे बच्चे के चेहरे पर
देर तक दिखाई देते रहे
जो अपने कमज़ोर हाथों से
निर्विकार भाव से उन्हें
चुपचाप धुल रहा था ।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

बचपन | विनय कुमार सिंह

चाय के कप के दाग
दिखाई दे रहे थे
और फिर गुस्से से
दी गई गाली के अक्स
उस छोटे बच्चे के चेहरे पर
देर तक दिखाई देते रहे
जो अपने कमज़ोर हाथों से
निर्विकार भाव से उन्हें
चुपचाप धुल रहा था ।