Pratidin Ek Kavita

हम न रहेंगे | केदारनाथ अग्रवाल 

हम न रहेंगे-
तब भी तो यह खेत रहेंगे;
इन खेतों पर घन घहराते
शेष रहेंगे;
जीवन देते,
प्यास बुझाते,
माटी को मद-मस्त बनाते,
श्याम बदरिया के
लहराते केश रहेंगे!
हम न रहेंगे-
तब भी तो रति-रंग रहेंगे;
लाल कमल के साथ
पुलकते भृंग रहेंगे!
मधु के दानी,
मोद मनाते,
भूतल को रससिक्त बनाते,
लाल चुनरिया में
लहराते अंग रहेंगे।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

हम न रहेंगे | केदारनाथ अग्रवाल

हम न रहेंगे-
तब भी तो यह खेत रहेंगे;
इन खेतों पर घन घहराते
शेष रहेंगे;
जीवन देते,
प्यास बुझाते,
माटी को मद-मस्त बनाते,
श्याम बदरिया के
लहराते केश रहेंगे!
हम न रहेंगे-
तब भी तो रति-रंग रहेंगे;
लाल कमल के साथ
पुलकते भृंग रहेंगे!
मधु के दानी,
मोद मनाते,
भूतल को रससिक्त बनाते,
लाल चुनरिया में
लहराते अंग रहेंगे।