Pratidin Ek Kavita

कोई बस नहीं जाता | नंदकिशोर आचार्य

कोई बस नहीं जाता खंडहरों में 
लोग देखने आते हैं बस । 
जला कर अलाव 
आसपास उग आये घास-फूस 
और बिखरी सूखी टहनियों का 
एक रात गुज़ारी भी किसी ने यहाँ 
सुबह दम छोड़ जाते हुए 
केवल राख ।

खंडहर फिर भी उस का कृतज्ञ है 
बसेरा किया जिस ने उसे – 
रात भर की खातिर ही सही। 
उसे भला यह इल्म भी कब थाः 
गुज़रती है जो खंडहर पर 
फिर से खंडहर हो जाने में !

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

कोई बस नहीं जाता | नंदकिशोर आचार्य

कोई बस नहीं जाता खंडहरों में
लोग देखने आते हैं बस ।
जला कर अलाव
आसपास उग आये घास-फूस
और बिखरी सूखी टहनियों का
एक रात गुज़ारी भी किसी ने यहाँ
सुबह दम छोड़ जाते हुए
केवल राख ।

खंडहर फिर भी उस का कृतज्ञ है
बसेरा किया जिस ने उसे –
रात भर की खातिर ही सही।
उसे भला यह इल्म भी कब थाः
गुज़रती है जो खंडहर पर
फिर से खंडहर हो जाने में !