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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
इच्छाओं का घर | अंजना भट्ट
इच्छाओं का घर- कहाँ है?
क्या है मेरा मन या मस्तिष्क या फिर मेरी सुप्त चेतना?
इच्छाएं हैं भरपूर, जोरदार और कुछ मजबूर
पर किसने दी हैं ये इच्छाएं?
क्या पिछले जन्मों से चल कर आयीं
या शायद फिर प्रभु ने ही हैं मन में समाईं?
पर क्यों हैं और क्या हैं ये इच्छाएं?
क्या इच्छाएं मार डालूँ?
या फिर उन पर काबू पा लूं?
और यदि हाँ तो भी क्यों?
जब प्रभु की कृपा से हैं मन में समाईं?
तो फिर क्या है उनमें बुराई?