Pratidin Ek Kavita

Pratidin Ek Kavita Trailer Bonus Episode 586 Season 1

Tumhari Kavita | Prashant Purohit

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तुम्हारी कविता | प्रशांत पुरोहित 

तुम्हारी कविता में उसकी काली आँखें थीं-
कालिमा किसकी-
पुतली की,
भँवों की,
कोर की,
या काजल-घुले आँसुओं की झिलमिलाती झील की?
तुम्हारी ग़ज़ल में उसकी घनी ज़ुल्फ़ें थीं—
ज़ुल्फ़ें कैसीं-
ललाट लहरातीं,
कांधे किल्लोलतीं,
कमर डोलतीं,
या पसीने-पगी पेशानी पे पसरतीं, बट खोलतीं?
तुम्हारी नज़्म में उसकी आवाज़ थी -
आवाज़ कैसी-
गाती हुई,
बुलाती हुई, 
अलसाती हुई,
या हाँफती काली आँखों से चुपचाप आती हुई?
तुम्हारे छंदों में उसकी पतली कमर थी-
कमर कैसी-
लहराती आँच-सी,
दूज के दो चाँद-सी,
नूरो-जमाल-सी, 
या पसलियों व पेट को जोड़े रखने के असफल प्रयास-सी?
तुम्हारी कविता में उसके पाँव थे -
पाँव कैसे -
महावर-रचे,
मख़मल-पगे,
बिछुआ-सजे,
या जो फटी बिवाई के साथ धरती पकड़कर चले?
तुम्हारे गीतों में उसकी गोरी बाँहें थीं-
बाँहें कैसीं-
हरसिंगार-डाल,
वैजयंती-माल,
कोई अनंग-जाल, 
या जो उठीं ऐंठन-भरी कसी मुट्ठियों को संभाल?

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।