Pratidin Ek Kavita

सिर्फ मोहब्बत ही मज़हब है हर सच्चे इंसान का | लक्ष्मीशंकर वाजपेयी

माँ की ममता, फूल की खुशबू,
 बच्चे की मुस्कान का
सिर्फ़ मोहब्बत ही मज़हब है 
हर सच्चे इंसान का
किसी पेड़ के नीचे आकर
राही जब सुस्ताता है
पेड़ नहीं पूछे है
किस मज़हब से तेरा नाता है
धूप गुनगुनाहट देती है चाहे 
जिसका आँगन हो
जो भी प्यासा आ जाता है, 
पानी प्यास बुझाता है
मिट्टी फसल उगाये पूछे धर्म
न किसी किसान का।
ये श्रम युग है जिसमे सबका संग-संग बहे पसीना है
साथ-साथ हंसना मुस्काना संग-संग आंसू पीना है
एक समस्याएँ हैं सबकी जाति धर्म चाहे कुछ हो
सब इंसान बराबर सबका एक सा मरना जीना है
बेमानी हर ढंग पुराना इंसानी पहचान का।
किसी प्रांत का रहनेवाला या कोई मज़हब वाला
कोई भाषा हो कैसी भी रीति रिवाजों का ढाला
चाहे जैसा खान-पान हो रहन सहन पहनावा हो
जिसको भी इस देश की मिट्टी और हवाओं ने पाला
है ये हिन्दुस्तान उसी का और वो हिन्दुस्तान का

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

सिर्फ महोब्बत ही मज़हब है हर सच्चे इंसान का | लक्ष्मीशंकर वाजपेयी

माँ की ममता, फूल की खुशबू,
बच्चे की मुस्कान का
सिर्फ़ मोहब्बत ही मज़हब है
हर सच्चे इंसान का
किसी पेड़ के नीचे आकर
राही जब सुस्ताता है
पेड़ नहीं पूछे है
किस मज़हब से तेरा नाता है
धूप गुनगुनाहट देती है चाहे
जिसका आँगन हो
जो भी प्यासा आ जाता है,
पानी प्यास बुझाता है
मिट्टी फसल उगाये पूछे धर्म
न किसी किसान का।
ये श्रम युग है जिसमे सबका संग-संग बहे पसीना है
साथ-साथ हंसना मुस्काना संग-संग आंसू पीना है
एक समस्याएँ हैं सबकी जाति धर्म चाहे कुछ हो
सब इंसान बराबर सबका एक सा मरना जीना है
बेमानी हर ढंग पुराना इंसानी पहचान का।
किसी प्रांत का रहनेवाला या कोई मज़हब वाला
कोई भाषा हो कैसी भी रीति रिवाजों का ढाला
चाहे जैसा खान-पान हो रहन सहन पहनावा हो
जिसको भी इस देश की मिट्टी और हवाओं ने पाला
है ये हिन्दुस्तान उसी का और वो हिन्दुस्तान का