Pratidin Ek Kavita

स्त्री को समझने के लिए - विश्वनाथ प्रसाद तिवारी 

कैसे उतरता है स्तनों में दूध 
कैसे झनकते हैं ममता के तार

कैसे मरती हैं कामनाएँ
कैसे झरती हैं दंतकथाएं

कैसे टूटता है गुड़ियों का घर
कैसे बसता है चूड़ियों का नगर

कैसे चमकते हैं परियों के सपने...
कैसे फड़कते हैं हिंस्र पशुओं के नथुने

कितना गाढ़ा लांछन का रंग
कितनी लम्बी चूल्हे की सुरंग 

कितना गाढ़ा सृजन का अंधकार
कितनी रहस्यमय मौन की पुकार

स्त्री, तुम्हे समझने के लिए
जन्म लेना पड़ेगा स्त्री-रूप में 

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

स्त्री को समझने के लिए - विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

कैसे उतरता है स्तनों में दूध
कैसे झनकते हैं ममता के तार

कैसे मरती हैं कामनाएँ
कैसे झरती हैं दंतकथाएं

कैसे टूटता है गुड़ियों का घर
कैसे बसता है चूड़ियों का नगर

कैसे चमकते हैं परियों के सपने...
कैसे फड़कते हैं हिंस्र पशुओं के नथुने

कितना गाढ़ा लांछन का रंग
कितनी लम्बी चूल्हे की सुरंग

कितना गाढ़ा सृजन का अंधकार
कितनी रहस्यमय मौन की पुकार

स्त्री, तुम्हे समझने के लिए
जन्म लेना पड़ेगा स्त्री-रूप में