Pratidin Ek Kavita

गुम है ख़ुद |  नंदकिशोर आचार्य
 
ऐसी भी होती होगी
खोज
न कोई खोजी है जिसमें
न कोई लक्ष्य
तलाश ख़ुद की तलाश में
अनवरत है गुम
और मैं
-जिसे खोजी कहते हैं सब-
गुम हूँ उस खोज में
जो कहीं खो कर
मुझे
गुम है ख़ुद।


What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

गुम है ख़ुद | नंदकिशोर आचार्य

ऐसी भी होती होगी
खोज
न कोई खोजी है जिसमें
न कोई लक्ष्य
तलाश ख़ुद की तलाश में
अनवरत है गुम
और मैं
-जिसे खोजी कहते हैं सब-
गुम हूँ उस खोज में
जो कहीं खो कर
मुझे
गुम है ख़ुद।