Pratidin Ek Kavita

 गोल पत्थर | नरेश सक्सेना 

नोकें टूटी होंगी एक-एक कर
तीखापन ख़त्म हुआ होगा
किस-किस से टकराया होगा
कितनी-कितनी बार
पूरी तरह गोल हो जाने से पहले
जब किसी भक्त ने पूजा या बच्चे ने खेल के लिए
चुन लिया होगा
तो खुश हुआ होगा
कि सदमे में डूब गया होगा
एक छोटी-सी नोक ही
बचाकर रख ली होती
किसी आततायी के माथे पर वार के लिए।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

गोल पत्थर | नरेश सक्सेना

नोकें टूटी होंगी एक-एक कर
तीखापन ख़त्म हुआ होगा
किस-किस से टकराया होगा
कितनी-कितनी बार
पूरी तरह गोल हो जाने से पहले
जब किसी भक्त ने पूजा या बच्चे ने खेल के लिए
चुन लिया होगा
तो खुश हुआ होगा
कि सदमे में डूब गया होगा
एक छोटी-सी नोक ही
बचाकर रख ली होती
किसी आततायी के माथे पर वार के लिए।