Pratidin Ek Kavita

 कौन हो तुम | अंजना बख्शी

तंग गलियों से होकर
गुज़रता है कोई
आहिस्ता-आहिस्ता

फटा लिबास ओढ़े
कहता है कोई
आहिस्ता-आहिस्ता

पैरों में नहीं चप्पल उसके
काँटों भरी सेज पर
चलता है कोई
आहिस्ता-आहिस्ता

आँखें हो गई हैं अब
उसकी बूढ़ी
धँसी हुई आँखों से
देखता है कोई
आहिस्ता-आहिस्ता

एक रोज़ पूछा मैंने
उससे,
कौन हो तुम
‘तेरे देश का कानून’
बोला आहिस्ता-आहिस्ता !!

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

कौन हो तुम | अंजना बख्शी

तंग गलियों से होकर
गुज़रता है कोई
आहिस्ता-आहिस्ता

फटा लिबास ओढ़े
कहता है कोई
आहिस्ता-आहिस्ता

पैरों में नहीं चप्पल उसके
काँटों भरी सेज पर
चलता है कोई
आहिस्ता-आहिस्ता

आँखें हो गई हैं अब
उसकी बूढ़ी
धँसी हुई आँखों से
देखता है कोई
आहिस्ता-आहिस्ता

एक रोज़ पूछा मैंने
उससे,
कौन हो तुम
‘तेरे देश का कानून’
बोला आहिस्ता-आहिस्ता !!