Pratidin Ek Kavita

इसीलिए | गगन गिल

वह नहीं होगा कभी भी 
फाँसी पर झूलता हुआ आदमी
वारदात की ख़बरें पढ़ते हुए 
सोचता था वह 

गर्दन के पीछे हो रही सुरसुरी को वह 
मुल्तवी करता रहता था 
तमाम ख़बरों के बावजूद 
सोचता था 
अपने लिए एक बिलकुल अलग अंत

इसीलिए जब अंत आया 
तो अलग तरह से नहीं आया

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

इसीलिए | गगन गिल

वह नहीं होगा कभी भी
फाँसी पर झूलता हुआ आदमी
वारदात की ख़बरें पढ़ते हुए
सोचता था वह

गर्दन के पीछे हो रही सुरसुरी को वह
मुल्तवी करता रहता था
तमाम ख़बरों के बावजूद
सोचता था
अपने लिए एक बिलकुल अलग अंत

इसीलिए जब अंत आया
तो अलग तरह से नहीं आया