Pratidin Ek Kavita

प्रेम करना या फंसना - रूपम मिश्रा 

हम दोनों नए-नए प्रेम में थे
उसके हाथ में महँगा-सा फोन था और बाँह में औसत-सी मैं
फोन में कई खूबसूरत लड़कियों की तसवीरें दिखाते हुए उसने
मुस्कुराते हुए गर्व से कहा, देख रही हो ये सब मुझपे मरती थीं
मैंने कहा और तुम! उसने कहा, ज़ाहिर है मैं भी प्रेम करता था
मुझे भी थोड़ा रोमांच हुआ

मैंने हसरत और थोड़ी रूमानियत से लजाते हुए कहा

मेरे भी स्कूल में एक पगलेट-सा लड़का था
मुझे बहुत अच्छा लगता था, हम खूब बातें करते थे
तब उसने मेरी ओर हिकारत से देखकर कहां
अच्छा तो तुम एक पागल से फँसी थी
मैं आज तक न समझ पाई भाषा का ये व्याकरण 
कि एक ही संवेदना में वो कैसे प्रेम में था और मैं कैसे फँसी थी।


What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

प्रेम करना या फंसना - रूपम मिश्रा

हम दोनों नए-नए प्रेम में थे
उसके हाथ में महँगा-सा फोन था और बाँह में औसत-सी मैं
फोन में कई खूबसूरत लड़कियों की तसवीरें दिखाते हुए उसने
मुस्कुराते हुए गर्व से कहा, देख रही हो ये सब मुझपे मरती थीं
मैंने कहा और तुम! उसने कहा, ज़ाहिर है मैं भी प्रेम करता था
मुझे भी थोड़ा रोमांच हुआ

मैंने हसरत और थोड़ी रूमानियत से लजाते हुए कहा

मेरे भी स्कूल में एक पगलेट-सा लड़का था
मुझे बहुत अच्छा लगता था, हम खूब बातें करते थे
तब उसने मेरी ओर हिकारत से देखकर कहां
अच्छा तो तुम एक पागल से फँसी थी
मैं आज तक न समझ पाई भाषा का ये व्याकरण
कि एक ही संवेदना में वो कैसे प्रेम में था और मैं कैसे फँसी थी।