कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
हाथ थामना | तन्मय पाठक
तुम समंदर से बेशक़ सीखना
गिरना उठना परवाह ना करना
पर तालाब से भी सीखते रहना
कुछ पहर ठहर कर रहना
तुम नदियों से बेशक़ सीखना
अपनी राह पकड़ कर चलना
संगम से भी पर सीखते रहना
बाँहें खोल कर मिलना घुलना
तुम याद रखना
कि डूबना भी उतना ही ज़रूरी है
जितना कि तैरना
तुम डूबने उतरना दरिया में
बचपने पर भरोसा करना
बच पाने की उम्मीद रखना
ये बताने के लिए बचना
कि अंतिम क्षणों में कुछ था
तो सिर्फ़ तिनका-तिनका साँसें
बिखरे-बिखरे लम्हे
और एक हाथ की चाहत
ये बताने के लिए बचना
कि बुनियादी तौर पर
हाथ थामना
आगे बढ़ने से कहीं ज़्यादा खूबसूरत होता है