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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
रथ दौड़ते हैं रंगीन फूलों के | केदारनाथ अग्रवाल
रंग नहीं
रथ दौड़ते हैं रंगीन फूलों के
सांध्य गगन में।
देखो-बस-देखो।
रंग नहीं
ध्वज फहरते हैं रंगीन स्वप्नों के
सांध्य गगन में।
झूमो-बस-झूमो!
रंग नहीं
नट नाचते हैं रंगीन छंदों के
सांध्य गगन में!
नाचो-बस-नाचो!