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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
परिचय | अंजना टंडन
अब तक
हर देह के ताने बाने पर
स्थित है
जुलाहे की ऊँगलियों के निशान
बस थोड़ा सा अंदर
रूह तक
जा धँसे हैं,
विश्वास ना हो
तो कभी
किसी की
रूह की दीवारों पर
हाथ रख देखना
तुम्हारे दस्ताने का माप भी
शर्तिया उसके जितना निकलेगा।