Pratidin Ek Kavita

Pratidin Ek Kavita Trailer Bonus Episode 648 Season 1

Bechain Baharon Me Kya Kya Hai | Qateel

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बेचैन बहारों में क्या-क्या है / क़तील

बेचैन बहारों में क्या-क्या है जान की ख़ुश्बू आती है
जो फूल महकता है उससे तूफ़ान की ख़ुश्बू आती है


कल रात दिखा के ख़्वाब-ए-तरब जो सेज को सूना छोड़ गया
हर सिलवट से फिर आज उसी मेहमान की ख़ुश्बू आती है


तल्कीन-ए-इबादत की है मुझे यूँ तेरी मुक़द्दस आँखों ने
मंदिर के दरीचों से जैसे लोबान की ख़ुश्बू आती है


कुछ और भी साँसें लेने पर मजबूर-सा मैं हो जाता हूँ
जब इतने बड़े जंगल में किसी इंसान की ख़ुश्बू आती है


कुछ तू ही मुझे अब समझा दे ऐ कुफ़्र दुहाई है तेरी
क्यूँ शेख़ के दामन से मुझको इमान की ख़ुश्बू आती है


डरता हूँ कहीं इस आलम में जीने से न मुनकिर हो जाऊँ
अहबाब की बातों से मुझको एहसान की ख़ुश्बू आती है


What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

बेचैन बहारों में क्या-क्या है / क़तील

बेचैन बहारों में क्या-क्या है जान की ख़ुश्बू आती है
जो फूल महकता है उससे तूफ़ान की ख़ुश्बू आती है

कल रात दिखा के ख़्वाब-ए-तरब जो सेज को सूना छोड़ गया
हर सिलवट से फिर आज उसी मेहमान की ख़ुश्बू आती है

तल्कीन-ए-इबादत की है मुझे यूँ तेरी मुक़द्दस आँखों ने
मंदिर के दरीचों से जैसे लोबान की ख़ुश्बू आती है

कुछ और भी साँसें लेने पर मजबूर-सा मैं हो जाता हूँ
जब इतने बड़े जंगल में किसी इंसान की ख़ुश्बू आती है

कुछ तू ही मुझे अब समझा दे ऐ कुफ़्र दुहाई है तेरी
क्यूँ शेख़ के दामन से मुझको इमान की ख़ुश्बू आती है

डरता हूँ कहीं इस आलम में जीने से न मुनकिर हो जाऊँ
अहबाब की बातों से मुझको एहसान की ख़ुश्बू आती है