Pratidin Ek Kavita

चिड़िया | रामदरश मिश्रा 

चिड़िया उड़ती हुई कहीं से आयी
बहुत देर तक इधर उधर भटकती हुई
अपना घोंसला खोजती रही
फिर थक कर एक जली हुई डाल पर बैठ गयी
और सोचने लगी-
आज जंगल में कोई आदमी आया था क्‍या?

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

चिड़िया | रामदरश मिश्रा

चिड़िया उड़ती हुई कहीं से आयी
बहुत देर तक इधर उधर भटकती हुई
अपना घोंसला खोजती रही
फिर थक कर एक जली हुई डाल पर बैठ गयी
और सोचने लगी-
आज जंगल में कोई आदमी आया था क्‍या?