Pratidin Ek Kavita

रात यूँ दिल में तिरी खोई हुई याद आई | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रात यूँ दिल में तिरी खोई हुई याद आई

जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए
जैसे सहराओं में हौले से चले बाद-ए-नसीम

जैसे बीमार को बे-वज्ह क़रार आ जाए

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

रात यूँ दिल में तिरी खोई हुई याद आई | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रात यूँ दिल में तिरी खोई हुई याद आई

जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए
जैसे सहराओं में हौले से चले बाद-ए-नसीम

जैसे बीमार को बे-वज्ह क़रार आ जाए