साहित्य और रंगकर्म का संगम - नई धारा एकल। इस शृंखला में अभिनय जगत के प्रसिद्ध कलाकार, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों और उनमें निभाए गए अपने किरदारों को याद करते हुए प्रस्तुत करते हैं उनके संवाद और उन किरदारों से जुड़े कुछ किस्से। हमारे विशिष्ट अतिथि हैं - लवलीन मिश्रा, सीमा भार्गव पाहवा, सौरभ शुक्ला, राजेंद्र गुप्ता, वीरेंद्र सक्सेना, गोविंद नामदेव, मनोज पाहवा, विपिन शर्मा, हिमानी शिवपुरी और ज़ाकिर हुसैन।
नमस्कार, मैं हूँ अमिताभ श्रीवास्तव। और स्वागत है आप सब का ‘नई धारा एकल’ में। इस विशेष कार्यक्रम में हम हर बार मिलते हैं किसी सुप्रसिद्ध अभिनेता या अभिनेत्री से और सुनते हैं उनकी पसंद के किसी नाटक या साहित्यिक कृति का पाठ।
आज के हमारे कलाकार हैं–श्री गोविन्द नामदेव जी। उनके नाम और काम से हम सब भलीभाँति परिचित हैं, पर शायद आप ये नहीं जानते कि नामदेव जी मूलतः सागर, मध्यप्रदेश के रहने वाले हैं। और आपने 1978 में एनएसडी से अपनी ट्रेनिंग पूरी की और उसके बाद एनएसडी के ही रिपर्टरी कंपनी में कई साल काम किया, जहाँ आपने अनेक नाटकों में मुख्य भूमिकाएँ निभाईं। उन्हीं में से एक नाटक है–‘सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक’, इस नाटक को नाटककार सुरेन्द्र वर्मा ने एक ऐसे कालखंड में स्थापित किया है जब देश में नियोग की प्रथा प्रचलित थी। नियोग माने किसी विवाहित स्त्री का किसी पर पुरुष के साथ संबंध बनाना–सिर्फ एक मकसद से संतान प्राप्ति के लिए, क्योंकि उसका अपना पति इस काम में अक्षम है। महाभारत में पाँचों पांडव नियोग से ही उत्पन्न हुए थे। इस नाटक में एक राजा है, ओकाक और उसकी पत्नी रानी शिलवती। रानी शिलवती बड़ी अनिच्छा से, मजबूरी में इस बात के लिए तैयार होती है, और उसे एक दिन एक पूरी रात बिताने के लिए महल से बाहर जाना पड़ता है। महल में राजा ओकाक अपने कक्ष में अकेला है दासी मैत्रिका के साथ। उसके मन में क्या हो रहा है, क्या परेशानी चल रही है; उसको पेश करेंगे गोविन्द नामदेव जी–
कितनी सुंदर हो तुम, ये मदभरी आँखें, ये रसीले होंठ, कामना के भीतरी से भीतरी रेशे को जैसे राख कर दे जैसे दहकते अंग-प्रत्यंग। बौराये हाथी सा सँभलते न सँभलता हो ऐसा उन्मादी यौवन, जो अकेले में तुम्हें पा ले तो मर्यादा की लौह शृंखलाएँ कमल तंतु की तरह चिंदी-चिंदी हो जाएँ! लेकिन तुम्हारा पति निश्चिंत है, क्योंकि तुम मेरे पास हो…मेरे पास। इस धरती की किसी भी युवती को मुझसे कोई डर नहीं, जो मेरे आँखों को भाये वो भी सुरक्षित, जो मेरी बाँहों में समाए वो भी सुरक्षित और जो मेरी शय्या पर आए वो भी सुरक्षित। संसार कर्म का ये एक अकेला चक्कर अनजान है मेरे लिए। साहित्यग्रंथों के इतने सारे अंश, वांग्यमय कितने, विवेक चंद, धर्म शास्त्र की वर्जनाएँ, ये बलात्कार, ये आत्मसमर्पण, ये चीरहरण…केवल एक उलझन है मेरे लिए, बस एक पहेली…। कहने दो मुझे…बचपन में ही माता-पिता का देहांत, तब मैं गुरुकुल में था और माता-पिता मेरे नाम पर शासन चला रहे थे, वयस्क होते ही राजधानी बुलाया गया, राज्याभिषेक, ब्याह की तैयारी…! तभी ज्योतिषी ने बतलाया कि मेरे ग्रह बहुत प्रबल हैं और किसी भी राज दुहिता के साथ मेरी कुण्डली नहीं मिल रही है, जिससे मिल रही है वो एक दरिद्र घर की कन्या है। ब्याह निश्चित हो गया..तैयारी होने लगी, वो दिन पास आने लगा, तब मैं और निश्चय फँस गया। मैंने राजवैद्य से कहा कि मैं नग्न युवती की कल्पना करता हूँ और मुझे कुछ भी नहीं होता…! उन्होंने मेरी परीक्षा ली कि शायद एक मनोवैज्ञानिक ग्रंथी थी, बचपन में ही अनाथ हो जाना, किसी से घुलमिल न पाना, बहुत अकेला हो जाना, हमेशा का अंतर्मुख, हमेशा का निर्णय दुर्बल, हमेशा का अनिश्चयी, भौचक…बहु संवेदनशील, बहुभीरु, हर अन्याय, हर अपमान को चुपचाप पी लेना, आत्मविश्वास की कमी, स्वभाव का ठंडापन, मन की अस्थिरता, बचपन में एक के बाद एक व्याधियों के आक्रमण। उन्होंने कहा कि मेरे हर रोग का निदान ब्याह है। ब्याह…! पत्नी से अच्छा उपचार दूसरा नहीं हो सकता, वो संगनी बन अकेलापन दूर करेगी, मित्र बनकर कामकाज में सम्मति देगी। माँ की ममता, बहन का स्नेह, प्रेयसी का प्रेम…हर कमी दूर होगी। सारे अभाव पूरे होंगे, खोया हुआ आत्मविश्वास मिलेगा, और जब शय्या पर पहुँचोगे तो वो घड़ी आएगी जब कामना की पूरी ऊष्मा के साथ नारीत्व पुरुषत्व का आह्वान करेगा तो उस मनोवैज्ञानिक क्षण में अपने आप ही…मैं…मैं उसे अपने बाँहों में भर लेता, उसकी कजरारी आँखें, लाल लाल होंठ, होंठों के फड़कते हुए कोने, मैं काँपती उँगलियों से उसके वक्ष से अंश को हटाता! उत्तेजित साँसों के साथ उसका निरी बंधन खोलता…उसका युवा शरीर, उसका नग्न शरीर…मैं थरथराते हाथों से उसके बदन को सहलाता, तप्त होंठों से उसके उभारों को छूता, मेरी धौंकनी मर जाती, मेरी साँस धौंकनी की तरह चलने लगती, मेरे माथे पर श्वेत बिंदु छलछला आते, मेरी देह की एक-एक नस खिंचकर टूटने-टूटने को हो आती कि…अब…आगे, आगे क्या होता है, क्या होता है इसके बाद, मैं बार-बार अपने शरीर से पूछता क्या होता है इसके बाद…, अपनी नसों के जाल से, अपने रुधिर की गर्मी से, अपने युवापन से, अपने पुरुषत्व से पूछता क्या होता है इसके बाद…! और तभी मेरे आँखों के आगे आ जाता अंधकार…अंधकार…अंधकार…अह्ं… अह्ंह्ह्…!
वाह, बेहद प्रभावशाली! बहुत कॉम्प्लिकेटेड, दुरूह चरित्र है ओकाक का। और उतना ही मुश्किल है उसे मंच के ऊपर अभिनीत करना! जब हमने नामदेव जी से पूछा कि इस पात्र को करते हुए, इसकी तैयारी करते हुए उन्हें क्या महसूस हो रहा था, कैसे तैयार किया उन्होंने इस रोल को? तो उन्होंने हमें जो बताया, आइए सुनते हैं उन्हीं से–
बहुत ही अद्भुत नाटक लिखा सुरेन्द्र वर्मा जी ने। कि, नियोग प्रथा को, उसकी जो इम्पॉर्टेंस है–आज के जीवन में भी, आज की लाइफ़ में भी, आज के संसार में भी इसकी प्रासंगिकता है। किस तरह से उन्होंने सोचा होगा कि इस तरह का नाटक लिखा जाए, किस तरह उन्होंने नियोग प्रथा को आज के समय में ले कर आने का सोचा होगा और किस ट्रांस में जाकर उन्होंने ये लिखा होगा, क्योंकि इसमें इतनी साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट है–कैरेक्टर्स का, सिचुएशन का, वो अद्भुत है।
एक राजा, जो नपुंसक है, उत्तराधिकारी नहीं दे सकता है राज्य को! वो इस नियोग प्रथा के तहत ऑफिशली अपनी वाइफ को एक रात के लिए किसी दूसरे आदमी के पास भेजता है और रात भर वो छटपटाता है, इमेजन करता है, कल्पना करता है कि उसकी वाइफ किसी दूसरे के…किसी दूसरे आदमी के बाँहों में होगी, उसके सामने नग्न होगी, किस तरह से उसकी शय्या पर होगी!... ये उसकी छटपटाहट है जो पूरे नाटक में चलती है। बड़ा डिफिकल्ट था, थोड़ा सा नया ही था मैं रिपर्टरी कंपनी में जब ये नाटक हुआ। लेकिन साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट देने का एक सिलसिला मैंने शुरू किया था सीखना; लाइब्रेरी से बहुत सारी किताबें मैंने पढ़ी थीं–किस तरह से इस तरह के कैरेक्टर्स को आप साइकोलॉजिकली ट्रीट कर सकते हैं। सो, उनकी मानसिकता में जाने का एक अभ्यास मैंने किया इस नाटक के दौरान, इस कैरेक्टर को करने के दौरान। वो अभ्यास ये था कि छोटा सा रेफरेंस में मैं बताता हूँ कि रिहर्सल के दौरान तो हम अपने अपने हिसाब से साइकोलॉजी में जाने की, अपने अपने हिसाब से कोशिश है, अपने-अपने हिसाब से अभ्यास करते रहे। घर पर भी अभ्यास करते रहे, उस सोच में जाने का अभ्यास करते रहे, ऐसे आदमी की व्यथा में…ऐसे आदमी के पैथोस में जाने का अभ्यास करते रहे। शो के दौरान, शो के दौरान खासतौर से वो सीन…जब उसकी वाइफ चली जाती है रात भर के लिए…और ये खिड़की में खड़ा हुआ सामने देख रहा है उस हवेली में, लाइट जली हुई है, जहाँ उसकी वाइफ है, और वो उसकी छटपटाहट…!
इस छटपटाहट को देने के लिए एक छोटा सा अभ्यास मैं हमेशा शो के दौरान करता था। जैसे इसके…पिछले सीन की लाइट ऑफ होती थी। मैं विंग्स में जाके और मैं इमेजन करता था कि मैं इस धरती पर बोझ…नपुंसक तो हूँ…इस धरती पर बोझ हूँ, एक संतान पैदा नहीं कर सकता! अपने राज्य के लिए… और ऐसा-ऐसा सोच के मैं ऐसे दीवार के सहारे खड़ा हो जाता था पीठ करके…और मैं इमैजिनेशन बोलता था–मैं इस धरती पर बोझ हूँ, लड़को मुझे मारो और मैं नंगा भाग रहा हूँ और पीछे पत्थर मार रहे हैं बच्चे…हो-हो-हो…नपुंसक है, नपुंसक है, नपुंसक है…! तो वो जो व्यथा आती थी, जो एक वो…आँखों में और पूरे शरीर में, बॉडी लैंग्वेज में जो बात आती थी और जैसे ही लाइट आती थी और मेरा टाइम हो जाता था एंट्री लेने का, तो जब मैं एंट्री करता था तो उसकी आँखों में कुछ अलग बात होती थी, उसके चलने में कुछ अलग बात होती थी! वो उदासी को देखता था उसको देखने के अंदाज में कुछ अलग बात होती थी। उससे जब बात करता है तो बात में भी कुछ अलग तरह का एक डेप्थ होती थी।… ये सब इस अभ्यास की वजह से मुझे इस नाटक ने बहुत प्रसिद्धि दी, और मुझे बहुत रिस्पेक्ट दिया, बहुत पॉपुलर हुआ मैं! और यही नाटक था जो टर्निंग पॉइंट था मेरा, मेरे करियर का कि रेिपर्टरी कंपनी में मुझे बहुत इज़्ज़त मिलने लगी। मुझे इसकी वजह से रोल मिलने लगे। इस नाटक को देखने के बाद, प्रोफेसर फ्रिट्ज़ बेन्नेविट्ज़ जो डायरेक्टर हैं, जर्मनी से आते थे। अभी तो वो नहीं हैं, लेकिन उन्होंने ये नाटक देखने के बाद मुझे ऑथेलो का कैरेक्टर दिया, और यहाँ से मेरा ऐसा सिलसिला चल पड़ा कि रिपर्टरी कंपनी में जो भी डायरेक्टर आते थे वो मुझे कंसीडर करते थे मेन कैरेक्टर के लिए। सो, इस नाटक का बहुत महत्व है मेरी जिंदगी में, मेरे करियर में। और इसके साथ ही बज्जू भाई का बहुत महत्व है मेरे लिए, मेरे करियर में। मैं हमेशा नतमस्तक होता हूँ, उनका आभार हमेशा मानता हूँ और इस बात का जिक्र भी करता हूँ सभी जगह। थैंक यू, बज्जू भाई! आपने मुझे ये रोल दिया, आज मैं यहाँ बैठा हूँ इस रोल की वजह से!
थैंक यू!
साथियो उम्मीद है कि आपको हमारी आज की प्रस्तुति पसंद आई होगी। इस शृंखला के अगले अंक में हम मिलेंगे मशहूर अभिनेत्री लवलीन मिश्रा से!
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नमस्कार!