Pratidin Ek Kavita

वापसी | अशोक वाजपेयी 

जब हम वापस आएँगे
तो पहचाने न जाएँगे-
हो सकता है हम लौटें
पक्षी की तरह
और तुम्हारी बगिया के किसी नीम पर बसेरा करें
फिर जब तुम्हारे बरामदे के पंखे के ऊपर
घोसला बनाएँ
तो तुम्हीं हमें बार-बार बरजो !
या फिर थोड़ी-सी बारिश के बाद
तुम्हारे घर के सामने छा गई हरियाली की तरह
वापस आएँ हम
जिससे राहत और सुख मिलेगा तुम्हें
पर तुम जान नहीं पाओगे कि
उस हरियाली में हम छिटके हुए हैं !
हो सकता है हम आएँ
पलाश के पेड़ पर नई छाल की तरह
जिसे फूलों की रक्तिम चकाचौंध में
तुम लक्ष्य भी नहीं कर पाओगे !
हम रूप बदलकर आएँगे
तुम बिना रूप बदले भी
बदल जाओगे-
हालांकि घर, बगिया, पक्षी-चिड़िया
हरियाली-फूल-पेड़ वहीं रहेंगे
हमारी पहचान हमेशा के लिए गड्डमड्ड  कर जाएगा
वह अंत
जिसके बाद हम वापस आएँगे
और पहचाने न जाएँगे।

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

वापसी | अशोक वाजपेयी

जब हम वापस आएँगे
तो पहचाने न जाएँगे-
हो सकता है हम लौटें
पक्षी की तरह
और तुम्हारी बगिया के किसी नीम पर बसेरा करें
फिर जब तुम्हारे बरामदे के पंखे के ऊपर
घोसला बनाएँ
तो तुम्हीं हमें बार-बार बरजो !
या फिर थोड़ी-सी बारिश के बाद
तुम्हारे घर के सामने छा गई हरियाली की तरह
वापस आएँ हम
जिससे राहत और सुख मिलेगा तुम्हें
पर तुम जान नहीं पाओगे कि
उस हरियाली में हम छिटके हुए हैं !
हो सकता है हम आएँ
पलाश के पेड़ पर नई छाल की तरह
जिसे फूलों की रक्तिम चकाचौंध में
तुम लक्ष्य भी नहीं कर पाओगे !
हम रूप बदलकर आएँगे
तुम बिना रूप बदले भी
बदल जाओगे-
हालांकि घर, बगिया, पक्षी-चिड़िया
हरियाली-फूल-पेड़ वहीं रहेंगे
हमारी पहचान हमेशा के लिए गड्डमड्ड कर जाएगा
वह अंत
जिसके बाद हम वापस आएँगे
और पहचाने न जाएँगे।