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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
कोर्ई आदमी मामूली नहीं होता | कुंवर नारायण
अकसर मेरा सामना हो जाता
इस आम सचाई से
कि कोई आदमी मामूली नहीं होता
कि कोई आदमी ग़ैरमामूली नहीं होता
आम तौर पर, आम आदमी ग़ैर होता है
इसीलिए हमारे लिए जो
ग़ैर नहीं, वह हमारे लिए
मामूली भी नहीं होता
मामूली न होने की कोशिश
दरअसल किसी के प्रति भी
ग़ैर न होने की कोशिश है।