Pratidin Ek Kavita

चूल्हे के पास  - मदन कश्यप 

गीली लकड़ियों को फूँक मारती
आँसू और पसीने से लथपथ
चूल्हे के पास बैठी है औरत
हज़ारों-हज़ार बरसों से
धुएँ में डूबी हुई
चूल्हे के पास बैठी है औरत
जब पहली बार जली थी आग धरती पर
तभी से राख की परतों में दबाकर
आग ज़िंदा रखे हुई है औरत!

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

चूल्हे के पास - मदन कश्यप

गीली लकड़ियों को फूँक मारती
आँसू और पसीने से लथपथ
चूल्हे के पास बैठी है औरत
हज़ारों-हज़ार बरसों से
धुएँ में डूबी हुई
चूल्हे के पास बैठी है औरत
जब पहली बार जली थी आग धरती पर
तभी से राख की परतों में दबाकर
आग ज़िंदा रखे हुई है औरत!