Pratidin Ek Kavita

बहुत दिनों के बाद | नागार्जुन

बहुत दिनों के बाद 
अबकी मैंने जी भर देखी 
पकी-सुनहली फ़सलों की मुस्कान 
- बहुत दिनों के बाद 
बहुत दिनों के बाद 
अबकी मैं जी भर सुन पाया 
धान कूटती किशोरियों की कोकिलकंठी तान 
- बहुत दिनों के बाद 
बहुत दिनों के बाद 
अबकी मैंने जी भर सूँघे 
मौलसिरी के ढेर-ढेर-से ताज़े-टटके फूल 
- बहुत दिनों के बाद 
बहुत दिनों के बाद 
अबकी मैं जी भर छू पाया 
अपनी गँवई पगडंडी की चंदनवर्णी धूल 
- बहुत दिनों के बाद 
बहुत दिनों के बाद 
अबकी मैंने जी भर तालमखाना खाया 
गन्ने चूसे जी भर 
-बहुत दिनों के बाद 
बहुत दिनों के बाद 
अबकी मैंने जी भर भोगे 
गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब साथ-साथ इस भू पर 
- बहुत दिनों के बाद 

What is Pratidin Ek Kavita?

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।

बहुत दिनों के बाद | नागार्जुन

बहुत दिनों के बाद
अबकी मैंने जी भर देखी
पकी-सुनहली फ़सलों की मुस्कान
- बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अबकी मैं जी भर सुन पाया
धान कूटती किशोरियों की कोकिलकंठी तान
- बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अबकी मैंने जी भर सूँघे
मौलसिरी के ढेर-ढेर-से ताज़े-टटके फूल
- बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अबकी मैं जी भर छू पाया
अपनी गँवई पगडंडी की चंदनवर्णी धूल
- बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अबकी मैंने जी भर तालमखाना खाया
गन्ने चूसे जी भर
-बहुत दिनों के बाद
बहुत दिनों के बाद
अबकी मैंने जी भर भोगे
गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब साथ-साथ इस भू पर
- बहुत दिनों के बाद