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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
नया सच रचने | नंदकिशोर आचार्य
पत्तों का झर जाना
शिशिर नहीं
जड़ों में
यह सपनों की
कसमसाहट है-
अपने लिए
नया सच रचने की
ख़ातिर-
झूठ हो जाता है जो
खुद झर जाता है।